अध्यात्म -दर्शन शास्त्रों में ईश्वर तत्व
प्राय- हमारे धर्म शास्त्री एवं प्रवचन करता यह कहा करते हैं की हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा लिखा है. तो आइए देखें की हिंदू धर्म में कितने शास्त्र हैं तथा उनकी मुख्य
विषय वस्तु क्या है.
हिंदू धर्म दर्शन में भारतिया महर्षियों ने जिन 6 दार्शनिक सीधांतों ( 6 Philosphies of thoughts ) की रचना की वे हैं –
1. महर्षि कपिल द्वारा रचित सांख्य दर्शन
2. - महर्षि पतंजलि द्वारा द्वारा रचित योग दर्शन
3. - महर्षि गौतम द्वारा रचित न्याय दर्शन
4. - महर्षि कनाद द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन
5. - महर्षि जैमिनी द्वारा रचित पूर्व मीमांसा
6. - महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित उत्र्तार मिनांसा जिसे ब्रह्मसूत्- र भी कहते हैं
यह सभी दर्शन छोटे छोटे सूत्रों के रूप में हैं तथा सभी का मुख्य उद्देश्य दुखों के मूल कारण अज्ञान को नष्ट कर मनुष्य को सत्य ज्ञान की प्राप्ति करना है- प्राचीन ऋषियों द्वारा सत्य एवं ज्ञान की खोज का नाम ही दर्शन है
1. महर्षि कपिल द्वारा रचित सांख्य दर्शन सबसे प्राचीन दर्शन माना जाता है सांख्य दर्शन ईश्वर की प्रथक सत्ता को नहीं मानता है आत्मा को ही ब्रह्म कहा है जो अनंत माया से आबध रहती है- महर्षि कपिल ने त्रिगुण माया & सत्व रज और तम की भी व्याख्या की है जो श्रिस्टी (Universe ) का मूल उपादन कारण है
2. महर्षि पतंजलि का योग दर्शन-& महर्षि पतंजलि को भी व्यकिवादी ईश्वर में विश्वास न था] उन्होने अपने योग दर्शन के 27वें सूत्र में लिखा है””तस्य वाचक प्रणव:”” उस ईश्वर नमक चेतन तत्व का अस्तित्व का बोध करने वाला शब्द ध्वनात्मक प्रणव “ओम” है]
3. महर्षि गौतम ने अपने न्याय दर्शन में पराभौतिकता- ( Methphysics ) को विकसित एवं परिभाषित किया- इस दर्शन में की गयी न्याय की परिभाषा के आधार पर न्याय करने की पढ़ित (Principle ) का निर्देश है यह दर्शन ईश्वर तत्व, धर्मशास्त्- र, मानोविज्ञा- न, तर्क एवं परा भौतिकता की तार्किक एवं वैज्ञानिक व्याकया ( Define) करता है
4. .वैशेषिक दर्शन के रचीयता महर्षि कनाद भी अपने दर्शन में ईश्वर को कोई स्थान नहीं देते हैं. उपनिषदों के ऋषियों ने जीव को ही ब्रह्म कहा है- उन्होने भी आत्मावलोकन- पर ही बल दिया है. इस संसार के संभवतः वो पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंन- े यह प्रतिपादित- किया की प्रतेयक (Every Particle) पदार्थ छोटे छोटे कनो से मिलकर बना है जिसे अणु कहा. इस प्रकार से इस जगत का मूल भौतिक कारण अणु है.
उन्होने अणु से भी सुक़चम (small) कण जिन्हें आज नूत्रोन (Nutron) कहते हैं का भी सबसे पहले विश्व का परिचय कराया इसलिए कनद (Kanad) को विश्व का सबसे पहला अणु विज्ञानी (First Nuclear scientist of the world ) कहा जाता है. महर्षि कनाद के अनुसार इस समस्त ब्रह्मांड में 9 ऐसे तत्व हैं जो विश्व ब्रामंड को गति प्रदान करते हैं वो हैं पृथ्वी, जल] अग्नि] वायु] आकाश, समय, दिशाएं, तथा बूढ़ी अथवा मन.
5. महर्षि जैमिनी द्वारा रचित पूर्वा मीमांसा- महर्षि जैमिनी महर्षि वेदव्यास के शिस्य (Disciple) थे. मीमांसा का अर्थ है वेदों में बताए गये विभिन्न कर्मों के तार्किक जाँच पूर्वा मीमांसा वेद निहित धर्म की व्याख्या करता है जिस से मनुष्य को सुक्ख और शांति प्राप्त हो सके पूर्वा मीमांसा ईश्वर की सत्ता पर विश्वास नहीं करता. आत्मसत्ता अर्थात आत्म दर्शन के द्वारा दिव्य आनंद की बात कही है.
6. महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित उत्तर मीमांसा को ब्रह्मसूत्- र भी कहते हैं. वेद बड़े जटिल ग्रंथ हैं अतः वेदों के परम ग्याता महर्षि वेदव्यास ने इस वेदांत दर्शन के द्वारा ब्रह्म विधया को छोटे छोटे सूत्रों के मध्यम से जगत को परिचया कराया. वेदांत ब्रह्म विधया का विज्ञान है जिसमें जगत की श्रीस्टी या ब्रह्मांड के सृजन का ब्रह्म ज्ञान है. इसे वेदांत इसलिय कहा गया है क्योंकि यह दर्शन समस्त ज्ञान का का अंत है जिसको जान लेने के पश्चात कुछ भी जानना शेष नहीं रहता.
इस प्रकार से हम देखते हैं की 6 दर्शन शस्त्रों में से 3 के रचीयता महर्षि कपिल] कनाद तथा जैमिनी ईश्वर की प्रथक सत्ता को नहीं मानते हैं ये हिन्दू के प्राय प्राथमिक दार्शनिक है।
वेद व्यास और उसका शिष्य जेमिनी विदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म की चिकत्सा करते नजर आते है जहा वे वेद का समर्थन भी करते है पर खुले आम नहीं। वे वेदांत का सहारा लेकर उसे वेदो का निचोड़ कह कर आम लोगो को गुमराह करते हुवे नजर आते है।
वस्तुता वेद हिन्दू दर्शन या हिन्दू धर्म नहीं। वो विदेशी ब्राह्मण धर्म है जिसे ब्राह्मण अपना धर्म ग्रन्थ मानते है और मनुस्मृति को कानून। यह कानून और धर्म वे सीधे ईश्वर से प्राप्त मानते है जिसे वे ब्रह्मा कहते है। किस की मीमांसा नहीं की जा सकती। अपौरेशि धर्म जहा वेद और भेद हो हो मानव कल्याण के लिए और चिकित्सा के लिए खुला नहीं है।
अब हम पुरातन , सनातन हिन्दू धर्म मान्यता को देखेंगे तो यह नजर आता है गैर ब्राह्मण हिन्दू धर्म सदाहीं ईश्वर और उसे मानव और अन्य रूपों में मानता रहा है क्यों की हिन्दू धर्म अध्यात्म ले साथ साथ सरल समाज का अस्तित्व मानता है। इस लिए आध्यात्म में उसे कभी राम भी कहा जाता है कभी चेतना और उसका अस्तित्व भी सभी में मानता है। हिन्दू धर्म का ये दर्शन कबीर ने अपनी सरल वाणी बीजक में सहज योग नाम से बहुत अच्छी तरह समझाया है।
आज हिन्दू दर्शन उपरके ६ दर्शनों में नहीं देखा जा सकता क्यों की उन पर विदेशी ब्राह्मण धर्मी लोग और उनका ब्राह्मण धर्म का प्रभाव रहा है।
हिन्दू दर्शन में चेतन या राम , माया या नारी अर्थात इच्छा , कण कण में भगवान , नीति धर्म , जैसी करनी वैसी भरनी , जो जो भावे त्यों त्यों खावे , सत्य ज्ञान का दर्शन, जो भाईचारा , समता , भेदभाव विहीन समाज जैसी बाते आती है . #बीजक_दर्शन
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